Cash Book क्या है ?
रुपया कहाँ-कहाँ से कितना आता है कहाँ-कहाँ कितना चला जाता है फिर शेष कितना
बच जाता है । इसे प्रकट करने के लिए Cash Book बनाया जाता है ।
यह प्रारम्भिक लेखे की पुस्तक है जिसमें मुद्रा की प्राप्तियों तथा भुगतानों
का लेखा किया जाता है। रोकड़ की समस्त प्राप्तियाँ डेबिट पक्ष में और समस्त भुगतान
क्रेडिट पक्ष में लिखे जाते हैं। रोकड़ वही वह पुस्तक है जो रोजनामचा व खाता-बही
दोनों के उद्देश्य पूर्ण करती है।
रोकड़ वही को सहायक पुस्तक के साथ-साथ एक प्रधान पुस्तक भी माना जाता है।
चूँकि रोकड़ बही में लेन-देन की प्राथमिक प्रविष्टि की जाती है इसलिए इसे मूल
प्रविष्टि की बही (Book of Original Entry) भी कहा जाता है।
Cash Book निम्नलिखित चार प्रकार के होते है :-
1 Simple Cash Book (साधारण रोकड़ वही )
2 Double Cash Book (दो खाने वाले रोकड़ वही )
3 Three Column Book (तीन खाने वाले रोकड़ वही)
4 Petty Cash Book (खुदरा रोकड़ वही )
Ratio
Analysis
वित्तीय विश्लेषण के लिए ratio analysis एक शक्तिशाली उपकरण है। किसी फाइनेंशियल स्टेटमेंट का सार्थक विश्लेषण करना
रेशियो के उपयोग से ही संभव होता है। ratio आकड़ो का एक ऐसा सेट
होता है जिनकी तुलना दूसरे सेट से की जाती है |
यहाँ ऐसे अनेक ratio होते है जिनकी गणना फाइनेंशियल स्टेटमेंट में सिंगल सेट से की जा सकती है। ratio की गणना उस उदेश्य पर आधारित होती है जिसके लिए इन ratio की आवश्यकता है। कभी कभी singal ratio भी कुछ जानकारी
दे सकता है परन्तु व्यापक विश्लेषण करने के लिए आपस में सम्बंधित ratio के सेट को विश्लेषित किये जाने की आवश्यकता होती है।
टैली द्वारा कंपनी के प्रदर्शन का
विश्लेषण करने में Ratio
analysis यूजर की सहायता की जाती है। ratio analysis रिपोर्ट सभी प्रमुख ratios की जानकारी और साथ ही संचनात्मक
लागत आकड़ो, कार्यशील पूँजी पर return इत्यादि जैसी जानकारियाँ भी प्रदान
करती है ,जो महत्वपूर्ण निर्णय लेने में प्रबंधन के उपयोग हेतु बल्कि साथ ही banks इत्यादि जैसी बाह्य एजेंसीस के लिए भी उपयोगी जानकारी प्रदान करने में सहायता
की जाती है |
टैली में ratio analysis एक रिपोर्ट होती है जो कंपनी द्वारा व्यापर की financial condition की जानकारी को प्राप्त करने के लिए बनाई जाती है यह एक short term report होती है |
Ratio
analysis in tally
Gateway
of tally में ratio analysis नाम से एक option
होता है जिसका प्रयोग करके हम रिपोर्ट
को ratio के रूप में देख सकते है। टैली में इस ऑप्शन का प्रयोग फाइनेंशियल कंडीशन की
जानकारी को प्राप्त करने के लिए किया जाता है |
यह एक short term report होती है। Gateway
of tally में ratio analysis नाम से एक option
होता है। जिसका प्रयोग करके हम रिपोर्ट
को ratio के रूप में देख सकते है |
जब हम Gateway of tally के अंतर्गत इस option
को enter करते है तो ratio
analysis window display होती है इसकी shortcut key “R” होती है |
जब यह display होती है तो कंपनी की सारी detail display हो जाती है। इस
रिपोर्ट में 2
part होते है एक पार्ट में amount show होती है तथा दूसरे पार्ट में ratio show होती है | इस रिपोर्ट को हम प्रिंट भी करा सकते है मुख्यतः इस रिपोर्ट का प्रयोग gross profit ratio ,net profit ratio को जानने के लिए किया जाता है इसके अलावा इस रिपोर्ट में कई सारी व्यवसायिक
जानकारी होती है।
Gateway
of tally → Ratio analysis
Ratio
analysis ऑप्शन पर क्लिक करने पर निम्नानुसार
विंडो ओपन होती है |
ह्रास (Depreciation) क्या है ?
किसी सम्पत्ति के मूल्य में किसी भी
कारण से होने वाली धीरे-धीरे स्थायी कमी को ह्रास कहते हैं।
वस्तुतः मूल्य में ह्रास कई कमी से होती
हैं जैसे - टूट-फूट,
समय का व्यतीत होना, अप्रचलन, दुर्घटना आदि।
सामान्य बोलचाल की भाषा में मूल्य ह्रास
का अभिप्राय मूल्य में कमी से लगाया जाता है परन्तु इसे लेखांकन की दृष्टि से देखा
जाय तो इसका अर्थ स्थायी स्थायी सम्पत्ति के पुस्तकीय मूल्य में कमी से है।
ह्रास (Depreciation) की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है :
1 ह्रास की व्यवस्था स्थायी सम्पत्तियों के लिए की जाती है।
2 ह्रास का आशय किसी स्थायी सम्पत्ति के पुस्तकीय मूल्य में कमी से होता है।
3 ह्रास के रूप में सम्पत्ति के मूल्य में निरंतर कमी होती रहती है।
4 सम्पत्ति के मूल्य में कमी धीरे-धीरे नियमित व स्थायी रूप से होती है।
5 ह्रास अनेक कारणों से हो सकता है, जैसे - घिसावट और क्षय, समय का व्यतीत होना, सम्पत्ति का अप्रचलन दुर्घटना आदि।
6 ह्रास एक आगम हानि है जिसे लाभ-हानि खाते में प्रभावित किया जाता है।
7 ह्रास सम्पत्तियों की लागत के वितरण की एक प्रक्रिया है, मूल्यांकन की नहीं।
8 ह्रास गैर-नकद संचालन व्यय है।
ह्रास के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य या
आवश्यकता निम्नलिखित है :
1 सही उत्पादन लागत ज्ञात करने के लिए समुचित ह्रास की व्यवस्था करना आवश्यक है।
यदि ह्रास के लिए आयोजन न किया जाये तो वस्तुओं की सही उत्पादन लागत की जानकारी
नहीं होगी।
2 ह्रास एक प्रकार का व्यय है। सम्पत्ति के निरंतर प्रयोग से इसके मूल्य में कमी
आती है और इस कमी को प्रतिवर्ष लाभ-हानि खाते में लिखना आवश्यक है अन्यथा शुद्ध
लाभ या हानि का सही-सही पता नहीं लग सकता है।
3 किसी भी व्यवसाय को सही वित्तीय स्थिति का अध्ययन उसके आर्थिक चिट्ठे द्वारा
होता है। अतः यह आवश्यक है कि चिट्ठे में सभी सम्पत्तियों को उनके वास्तविक मूल्य
पर दिखाया जाये।
4 ह्रास का एक उद्देश्य यह भी है कि जब सम्पत्ति का जीवन काल समाप्त हो जाये तो
नयी सम्पत्ति खरीदकर उसका पुनः-स्थापन किया जा सके।
5 पूँजी को सुरक्षित रखने की दृष्टि से भी ह्रास का प्रबंध किया जाता है।
ह्रास (Depreciation) के मुख्य कारण निम्नलिखित है :
1 सम्पत्तियों के प्रयोग के कारण उनमें टूट-फूट होती है, घिसावट होती है और वे पुरानी एवं कमजोर हो जाती हैं। फलतः उनके मूल्य में कमी
आ जाती है।
2 कुछ सम्पत्तियाँ ऐसी होती है जिनका काल निश्चित होता है। अतः जैसे-जैसे समय
व्यतीत होता है, इनके मूल्य में कमी होती जाती है। ऐसे सम्पत्तियों के मूल्य में कमी को समय
बीतने पर ह्रास कहते है।
3 कभी-कभी नए आविष्कार के कारण पुरानी सम्पत्ति के बेकार न होने के बावजूद उसके
मूल्य में कमी आ जाती है। इस हानि को अप्रचलन से ह्रास कहते हैं।
4 कुछ सम्पत्तियाँ नाशवान प्रकृति की होती है, जैसे - खनिज खदानें, जंगल, तेल के कुँए आदि अर्थात प्राकृतिक सम्पदाएँ। ऐसी सम्पत्तियों में से जैसे-जैसे
सामग्री निकाली जाती है, वैसे-वैसे इनके भण्डार में कमी होती
जाती है। भण्डार के खाली होने के इस कर्म को को रिक्तीकरण कहते हैं। इस प्रकार
रिक्तीकरण ह्रास का एक कारण है।
5 कभी-कभी सम्पत्ति के बाजार मूल्य में गिरावट आ जाती है। इस प्रकार मूल्य में
कमी को ह्रास माना जाता।
ह्रास (Depreciation) की गणना के कुछ नियम निम्नलिखित है :
1 यदि सम्पत्ति का क्रय किसी महीने के बीच में किया जाता है तो सुविधा के लिए
ह्रास की गणना अगले माह से लेखांकन की अंतिम तिथि तक की जाती है। जैसे यदि मशीन का
क्रय 10 जून को हुआ हो तो ह्रास की गणना 1 जुलाई से 31 मार्च तक की जायेगी अर्थात 9 माह के लिए।
2 यदि सम्पत्ति वर्ष के प्रारम्भ में तथा अंत में विद्यमान हो तो ह्रास की गणना
एक वर्ष के लिए की जायेगी।
3 यदि किसी सम्पत्ति को वर्ष के दौरान बेच दिया जाय तो ऐसी सम्पत्ति पर सम्पत्ति
की बिक्री अथवा निस्तारण की तिथि तक का ह्रास निकाला जाना चाहिए।
4 यदि ह्रास की दर प्रति वर्ष के रूप में दी गई हो और सम्पत्ति के क्रय की तिथि
नहीं दी गई हो तो ह्रास की गणना निम्न में से किसी भी विधि से की जा सकती है :
>अतिरिक्त सम्पत्ति पर ह्रास की गणना न की जाय।
>अतिरिक्त लगाई गई सम्पत्ति पर पूरे एक वर्ष का ह्रास लगाया जाये।
>अतिरिक्त लगाई गई सम्पत्ति पर माह के लिए ह्रास लगाया जाता है।
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