बुटिंग क्या है ------ सभी कंप्यूटर,
चाहे वह किसी भी साइज, क्लासिफिकेशन, या ऑपरेटिंग सिस्टम के हो, उनकी एक बूटअप
प्रोसेस होती है जब कम्प्युटर का स्वीच आन किया जाता है तो जो पावर ऑन पर
एक्सेक्यूट होती है तथा कम्प्युटर मे इंस्टाल आपरेटिंग सिस्टम कम्प्युटर की
मेमोरी रोम मे लोड होना प्रारम्भ कर देती है शब्द “boot” पुरानी कहावत “pulling
yourself up by your bootstraps” से आया हैं और
मूल रूप से इसे “बूटस्ट्रैप”
प्रोसेस कहा जाता है। यह प्रोसेस पूरी होने के
बाद, इंस्टॉल ओएस का कंट्रोल
हो जाता है, जो यह सुनिश्चित
करने के बाद होता हैं कि कंप्यूटर के साथ सब कुछ ठीक है। इस प्रोसेस को बुटिंग
कहते है।
प्रोसेस----
जब आप अपने कंप्यूटर का पावर आन करके उसे स्टार्ट करते हैं तो सीपीयू (CPU)
और बायोस (BIOS) जो एक फर्मवेयर है
अर्थात् यह ऐसा साफ्टवेयर है जो हार्डवेयर मे पहले से इंस्टाल रहता है मिलकर कंप्यूटर को स्कैन करते हैं, जिसमें कंप्यूटर यह पता करता है कि मदरबोर्ड से कौन-कौन से
उपकरण जुडें है और ठीक प्रकार से काम कर रहे हैं या नहीं, इसमें रैम, डिस्पले,
हार्डडिस्क आदि की जॉच होती है, यह प्रक्रिया पोस्ट (Post) अर्थात पावर आन सेल्फ टेस्ट की प्रक्रिया कहलाती
है।
जब कंप्यूटर पोस्ट (Post) की प्रकिया कंम्पलीट
कर लेता है तो बायोस (BIOS) बूूटिंग Device
को सर्च करता हैै, और वह हर बूट डिवाइस में बूटिंग फाइल को सर्च करता है,
इसके बाद BIOS कुछ ऐसी चीज़ों की खोज करता है जो इसे बूट कर सकती है। इसे CMOS
के boot sequence में सेट किया जा सकता है। इसे A: Drive (Floppy) C:
(Hard Drive, Primary Partition) D: (CD/DVD Drive) के लिए सेट किया जा सकता है या अन्य जैसे कि यूएसबी ड्राइव
या नेटवर्क कार्ड (बायोस के आधार पर)। सबसे पहले First Boot Device, फिर Second Boot Device इसके बाद Third Boot Device और अगर इसमें भी बूटिंग फाइल न मिले तो (उदाहरण के लिए यदि
रैम फॉल्टी हैं या वह लूज फिट हैं, तो आपको बीप
सुनाई देते हैं।) Boot Other Device, बायोस (BIOS) को जिसमें भी
पहले बूटिंग फाइल (Booting File) मिल जाती है। एक
बार जब टार्गेट बूट डिवाइस सिलेक्ट हो जाता हैं, तो उसके बाद BIOS मास्टर बूट रिकॉर्ड (MBR) के लिए खोज करेगा। यदि वह हार्ड ड्राइव की खोज
कर रहा है तो यह cylinder 0, head 0, sector 1 पर सर्च करता है।
एक बार जब एक वैलीड वॉल्यूम बूट सेक्टर पाया जाता है, तब BIOS का अपना काम पूरा हो जाता है और यह कंट्रोल को
ऑपरेटिंग सिस्टम को सौंपता है करता है जो कि बूटिंग प्रोसेस को पूरा करता है। वह
उसी से कंप्यूटर को बूट करा देता है और कंप्यूटर में विंडो की लोडिंग शुरू हो
जाती है। और आपका कंप्यूटर पूरा Process
compelite कर लेता है और कंप्यूटर
फिर उसी उवास्था में आ जाता है,
जो लोग सीडी या डीवीडी से विंडोज इंस्टॉल करते हैं वह First Boot
Device के तौर पर CDROM को सलेक्ट करते हैं, लेकिन हर किसी सीडी से बायोस (BIOS) कंप्यूटर को बूट नहीं करा सकता है इसके लिये सीडी या
डीवीडी का बूटेबल (Bootable CD or DVD) होना जरूरी है, इसमें (Bootable)
होने का मतलब है कि उसमें बूटिंग फाइल (Booting
File) होना चाहिये जिससे बायोस
(BIOS) उसे पढ सके। और अपना काम कर सके,।
बुटिंग का प्रकार----
कंप्यूटर में बूटिंग प्रोसेस दो प्रकार के होती है कोल्ड बूटिंग (Cold
booting) और वार्म बूटिंग (Warm
Booting)।
कोल्ड बूटिंग क्या होती है - जब हम CPU के कंप्यूटर computer का पावर बटन Power
button या स्टार्ट बटन (Start
button) को प्रेस कर के कंप्यूटर
को स्टार्ट करते हैं तो इस Process को कोल्ड बूटिंग Cold booting कहा जाता है।
वार्म बूटिंग क्या होती है - कंप्यूटर के हैंग होने की स्थिति में की-बोर्ड के द्वारा Alt+Ctrl+Del
दबाकर या फिर रिस्टार्ट बटन का उपयोग कंप्यूटर
को दोबारा बूट कराने की प्रकिया वार्म बूटिंग कहलाती Warm Booting या फिर (reboot) भी कहते हैं,
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